झोटी चिता क्या है, विस्तार से जानने के लिए यह समझना ज़रूरी है कि इसे भित्तिचित्र कला और रंगोली दोनों रूपों में बनाया जाता है।
ग्रामीण लोक कला शैली होने के बावजूद, वर्तमान समय में ओड़िसा के हर छोटे-बड़े उत्सव और समारोह में झोटी या चिता को बनाना ज़रूरी माना जाता है।
इस ब्लॉग में मैंने झोटी चिता से सम्बंधित सभी मुख्य जानकारी शामिल की है, इसलिए ब्लॉग को अंत तक ज़रूर पड़ें –
झोटी चिता क्या है ?
झोटी चिता, ओड़िसा (Odisha) राज्य की ग्रामीण क्षेत्रीय लोक कला शैली है। मुख्य रूप से इसे भित्तिचित्र कला (Graffiti Art) और रंगोली (Rangoli) की तरह बनाया जाता है। इसलिए झोटी चिता को दोनों का मिलाजुला रूप भी कह सकते हैं।
झोटी चिता की शुरुआत भले ही गाँव से हुई लेकिन धीरे-धीरे इसे शहरों में भी पसंद किया जाने लगा। इसलिए वर्तमान समय में पारम्परिक एवं सांस्कृतिक पर्वों पर ओड़िसा में झोटी चिता को मुख्य रूप से बनाया जाता है।
इससे पहले कि झोटी चिता से सम्बंधित तथ्यों को विस्तार से जानें। झोटी चिता की मुख्य जानकारी का संक्षेप विवरण इस प्रकार है –
झोटी चिता की पहचान ग्रामीण क्षेत्रीय लोक कला शैली |
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झोटी चिता का अर्थ दीवारों और फर्श पर उकेरी गई निश्चित आकृतियां |
झोटी चिता की उत्पत्ति ओड़िसा राज्य के ग्रामीण क्षेत्र |
झोटी चिता के लिए सामग्री मिट्टी जैसा लाल रंग, चावल का पेस्ट, सफेद चॉक पाउडर, लकड़ी का टुकड़ा अथवा छड़, कपड़े का छोटा टुकड़ा |
झोटी चिता बनाने की तकनीक ऊंगलियों से अथवा लकड़ी की छड़ द्वारा |
झोटी चिता का मुख्य पर्व मुख्य रूप से मनबासा गुरुवार पर्व |
झोटी चिता का स्थान घर की दीवारों, आंगन एवं मुख्य दरवाज़े |
झोटी चिता के कलाकार
घर की सुहागन महिलाएं |
झोटी चिता का महत्त्व कलात्मकता को प्रोत्साहन सुंदरता का प्रतिबिम्ब घरों को नया रूप देना उत्सवों एवं समारोहों का आगमन |
झोटी चिता का अर्थ क्या है ?
झोटी (Jhoti) अथवा चिता (Chita) एक ही कला के दो नाम हैं। इन नामों का इस्तेमाल एक साथ जोड़कर और कभी-कभी समानार्थी (Synonym) के रूप में किया जाता है।
झोटी चिता कब बनाई जाती है ?
ओड़िसा में झोटी चिता मुख्यतः मनबासा गुरुवार (Manabasa Gurubara) नामक त्योहार पर लक्ष्मी ब्राटा के पूजन के लिए बनाई जाती है। ब्राटा यानि व्रत। ओड़िसा की स्थानीय भाषा में व्रतों (Fasting) को ब्राटा कहा जाता है। इसलिए माँ लक्ष्मी की आराधना में रखे जाने वाले व्रत को लक्ष्मी ब्राटा कहते हैं।
इसके अलावा – रज या रजो/राजा परबा/राजा परबास (Rajo/Raja Parba), कार्तिक पूर्णिमा/बाली यात्रा (Bali Yatra), डोला पूर्णिमा/डोला यात्रा (Dola Yatra), झूलन यात्रा (Jhulan Yatra), वसंत पंचमी/सरस्वती पूजा/माघ पूर्णिमा (Basant Panchami), धनलक्ष्मी पूजा (Dhanalakshmi Pooja), गजलक्ष्मी पूजा (Gajalakshmi Pooja) और शादी समारोह में झोटी चिता बनाने का प्रचलन है।
झोटी चिता बनाने के लिए क्या सामान चाहिए ?
झोटी चिता का आधार (Base) बनाने के लिए मिट्टी जैसे लाल रंग का उपयोग किया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘धाऊ‘ कहते हैं।
धाऊ के ऊपर सुन्दर आकृतियां बनाने के लिए पिसे चावलों के पेस्ट (Rice Paste) को इस्तेमाल किया जाता है, जिसे आम भाषा में ‘पिथौ’ कहते हैं।
शहरी इलाकों में सफ़ेद रंग के लिए पिथौ के स्थान पर चॉक पाउडर (Chalk Powder) भी उपयोग किया जाता है।
लकड़ी अथवा किसी टहनी के एक सिरे पर कपड़ा लपेटकर ब्रश (Brush) तैयार किया जाता है। जिससे दीवारों पर चावल का पेस्ट छिड़ककर धान के ढेर जैसा पैटर्न (Pattern) बनाते हैं।
झोटी चिता में किन आकृतियों को बनाया जाता है ?
झोटी चिता में मुख्यतः मुक्त हस्तकला (Free Hand Art) के तत्व जैसे – कमल के फूल (Lotus), लक्ष्मी जी के पद्चिन्ह (Footprints), शंख (The Conch Shell), कुंभ (Aquarius), मोर (Peacock), हाथी (Elephant), मछली (Fish), चक्र (The Wheel), गदा (The Mace) और पुष्प (Flowers) आदि बनाये जाते हैं।
इनके अतिरिक्त ज्यामितीय आकृतियां (Geometric Shapes) – लकीरें (Lines), गोले (Circles), त्रिकोण (Triangle), चौकोर (Square), बिंदु (Dots) और पिरामिड (Piramid) भी झोटी चिता की डिज़ाइन में देखने को मिलते हैं।
झोटी चिता कहाँ बनाई जाती है ?
झोटी चिता भित्तिचित्र कला शैली (Graffiti Art Style) का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिए मुख्य रूप से दीवारों पर बनाई जाती है।
इसके अतिरिक्त विभिन्न उत्सवों (Festivals), समारोह (Celebrations) और शुभ दिनों (Special Days) पर पूजा घर, घर के आंगन, गलियारे, दरवाज़ों की दहलीज़ और फर्श को झोटी चिता से सजाया जाता है।
झोटी चिता बनाने की तकनीक क्या है ?
उड़ीसा में ग्रामीण महिलायें अक्सर अपने घरों की मिट्टी वाली दीवारों पर विभिन्न आकृतियों और फूलों के पैटर्न (Pattern) से झोटी बनाती हैं। धाऊ (मिट्टी जैसा रंग) लगाकर झोटी बनाना, एक अद्भुत विपरीतता दर्शाता है। फर्श पर झोटी चिता बनाने के लिए भी लोग बहुत बार धाऊ से आधार तैयार करते हैं।
बाहरी दीवारों की झोटी में त्रिकोणीय रूप में धना शीश (फटके हुए धान के ढेर जैसी आकृति) बनाये जाते हैं। धना शीश बनाने के लिए उंगलियों के नाखूनों से पिथौ (अर्द्ध तरल चावल के पेस्ट) को दीवार पर छिड़कते हुए कलाई घुमाकर लंबी रेखाएं खींची जाती हैं। इसके अलावा धना शीश के सबसे ऊपरी हिस्से पर उंगलियों से बिंदुओं को बनाया जाता है।
इस कला में उंगलियों को ब्रश (Brush) की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी एक छोटी लकड़ी अथवा छड़ी के एक तरफ कपड़ा लपेटकर ब्रश बनाकर सुंदर नमूने उकेरे जाते हैं।
झोटी चिता कितने प्रकार की होती हैं ?
झोटी चिता बहुत तरह से बनाई जाती हैं, जिनमें से कुछ मुख्य निम्नलिखित हैं –
दीवार चिता
इस झोटी चिता को घरों की दीवारों पर बाहरी तरफ बनाया जाता है। यह दिखने में पिरामिड की तरह लगते हैं लेकिन यह अनाज के ढेर को दर्शाते हैं। पिरामिड के सबसे ऊपरी हिस्से पर उँगलियों से ढेर सारे बिंदु बनाये जाते हैं।
स्वप्न पद्म चिता
इस प्रकार की झोटी चिता बहुत बड़ी, गोलाकार और विस्तृत डिज़ाइन वाली होती हैं। इन्हें बनाने में एकाग्रता और समय की आवश्यकता होती है। मुख्यतः ये आँगन और दरवाज़ों की दहलीज़ पर बनाई जाती हैं।
लक्ष्मी पाद चिता
इस झोटी चिता में लक्ष्मी जी के पैर मुख्य केंद्र होते हैं। ऐसा माना जाता है कि झोटी के अंदर देवी लक्ष्मी के पैरों के छोटे प्रतिनिधित्व हैं। इसे बरामदे या घर के पूजा स्थल पर बनाया जा सकता है।
झोटी चिता का महत्त्व क्या है ?
ओड़िसा की लोक कला, झोटी चिता ने समाज को धार्मिक गतिविधियों (Religious Activities) से जोड़ रखा है।
पूरे साल गांव की महिलाएं अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कई तरह के अनुष्ठान करती हैं। प्रत्येक अवसर के लिए फर्श या दीवार पर एक विशिष्ट झोटी चिता बनाई जाती है।
ओड़िसा की सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार महालक्ष्मी उसी घर में आती हैं, जहाँ साफ़-सफाई होती है। इसलिए अवसरों के आते ही हर घर में अतिरिक्त सफाई की जाती है।
ओड़िसा के लोग ऐसा मानते हैं कि झोटी चिता में शुभ संकेत बनाकर देवी-देवताओं को खुश किया जा सकता है। जिससे प्रसन्न होकर भगवान लोगों की सभी मनोकामनायें (Wishes) पूरी कर देते हैं।
मुझे उम्मीद है, इस ब्लॉग को पढ़कर आप जान गए होंगे कि झोटी चिता किसे कहते हैं। यदि झोटी चिता से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न है तो नीचे Comment Section में ज़रूर पूछें।
मेरा नाम प्रज्ञा पदमेश है। मैं इस प्यार से बने मंच – कारीगरी की संस्थापिका हूँ। अपने अनुभव को आप सभी के साथ साझा करना चाहती हूँ ताकि आप भी मेरी तरह कला के क्षेत्र में निपुण हो जाएं।