क्या आपने भी मुग्गुलु आर्ट के बारे में सुना है ? आपके मन में भी यह प्रश्न आया है कि मुग्गुलु क्या है ?
मुग्गुलु आर्ट न केवल एक पारम्परिक शैली है बल्कि जानी-मानी कला, कोलम से बहुत समानता रखती है।
मैं इस ब्लॉग में मुग्गुलु से जुड़े बहुत से दिलचस्प तथ्य साझा करने वाली हूँ। इसलिए पूरी जानकारी के लिए ब्लॉग को अंत तक ज़रूर पढ़ें।
मुग्गुलु क्या है – कैसी दिखती है और कहाँ की लोक कला शैली है
यदि आप कला में रुचि रखते हैं तो आपने निश्चित रूप से मुग्गुलु आर्ट के बारे में सुना होगा। यह कला के सबसे प्राचीन रूपों में से एक है। पिछले कुछ समय में बहुत से लोग इस कला में रुचि ले रहे हैं।
इससे पहले कि मैं मुग्गुलु आर्ट के विस्तार में जाऊं, नीचे टेबल (Table) में इस अद्भुत कला का संक्षेप विवरण दे रही हूँ –
मुग्गुलु किस क्षेत्र की कला है
आंध्र प्रदेश |
मुग्गुलु कब बनाये जाते हैं
मकर संक्रांति उत्सव |
मुग्गुलु बनाने की सामग्री
फूल, हल्दी, कुमकुम, धूप, गाय का गोबर, कैल्शियम (Calcium) और चाक पाउडर (Chalk Powder) |
मुग्गुलु बनाने की तकनीक
तर्जनी और अंगूठे का उपयोग |
मुग्गुलु के लाभ
कला के साथ अंकगणित का मिलाप त्योहारों के आगमन का प्रतीक छोटे जीवों के प्रति समर्पण की भावना |
मुग्गुलु कौन बना सकता है
घर की महिलाएं |
मुग्गुलु क्या है ?
मुग्गु (Muggu), मुग्गुलु (Muggulu) अथवा मुग्गुपिंडी (Muggupindi) के नाम से प्रसिद्ध कला को आज भी आंध्र प्रदेश के स्थानीय लोगों ने संजोकर रखा है। यह भव्य पारंपरिक कला पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित की जाती है।
मुग्गुलु कैसी दिखती है ?
यह दिखने में बिल्कुल कोलम जैसी लगती है। अगर परंपरागत मुग्गुलु की बात करें तो यह हमेशा से चावल के आटे से बनाई जाती है। मुग्गुलु को बनाने के लिए किसी निश्चित पैटर्न (Pattern) या स्टैंसिल (Stencil) की ज़रुरत नहीं होती बल्कि यह मुक्त हस्तकला (Free Hand Art) है।
मुग्गुलु आर्ट कब बनाई जाती है ?
संक्रांति के फसल उत्सव पर लगभग हर घर में सूर्योदय से पहले मुख्य द्वार और आँगन में मुग्गु बनाये जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि चींटियों, कीड़ों और गौरैयों को चावल के आटे के मुग्गु बनाकर भेंट दी जाती है।
मुग्गुलु बनाने में किस सामग्री का उपयोग किया जाता है ?
मुग्गुलु का आधार बनाने के लिए गाय के गोबर (Cow Dung Cake) का इस्तेमाल किया जाता है। गोबर से लीपने के बाद ही वो डिज़ाइन बनाने के लिए फर्श तैयार होता है।
मुग्गुलु डिज़ाइन के लिए कैल्शियम पाउडर (Calcium Powder), चाक पाउडर (Chalk Powder) और चावल के आटे (Rice Flour) में से किसी एक का उपयोग किया जा सकता है।
मुग्गुलु सजाने के लिए फूलों (Flowers) और मुग्गुलु पूजन के लिए हल्दी (Turmeric) व कुमकुम (Vermillion) का उपयोग किया जाता है।
मुग्गुलु बनाने की तकनीक क्या है ?
महिलाएं सूर्योदय से पहले घर की धुलाई करके दहलीज़ को गोबर से लीपती है। जिस पर कैल्शियम और चाक पाउडर के मिश्रण से सुन्दर मुग्गुलु बनाये जाते हैं।
पाउडर थोड़ा मोटा रखा जाता है ताकि यह गीली ज़मीन पर आसानी से चिपक जाये और सूखने के बाद मुग्गुलु का डिज़ाइन सुंदर उभरकर आये। इसके बाद फूलों, हल्दी और कुमकुम से मुग्गुलु का पूजन किया जाता है।
मुग्गुलु कला कितने प्रकार की होती है ?
- चुक्कालू लेनी मुग्गुलु / Chukkalu Leni Muggulu
ये मुक्त हस्तकला है। अवसरों के अनुसार इसके डिज़ाइन में विशिष्ट तत्वों जैसे – फूल, पत्तियाँ व मोर आदि का उपयोग किया जाता है।
- चुक्कला मुग्गुलु / Chukkala Muggulu
इसे डॉट डिज़ाइन (Dot Design) भी कहते हैं। इसका आधार एक सही पैटर्न में बिंदुओं द्वारा बनाया जाता है। रेखाओं (Lines) या वक्रों (Curves) द्वारा ये बिंदु आपस में जुड़े रहते हैं।
- टिपुडु मुग्गुलु / Tippudu Muggulu
इसे बनाने में भी बिंदुओं का उपयोग किया जाता है। इन बिंदुओं को केंद्र मानकर चारों ओर घुमावदार डिज़ाइन बनाई जाती है।
- रथम मुग्गुलु / Ratham Muggulu
इन्हें रथ मुग्गुलु भी कहा जाता है। इसमें फूल, पत्तियाँ, रेखाएँ और बिंदुओं द्वारा रथ की आकृति को बनाया जाता है।
मुग्गुलु आर्ट का क्या महत्व है ?
1. मुग्गुलु बनाने का मुख्य उद्देश्य मानवता और परोपकार की शिक्षा देना है। जिसके लिए त्योहारों के समय बनाये जाने वाले मुग्गु में चावल के आटे का उपयोग किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह भोजन की तरह चींटियों, छोटे कीड़ों और पंछियों को भेंट किया जाता है।
2. त्योहारों के आते ही आंध्र प्रदेश के लगभग हर घर में मुग्गुलु बनाये जाते हैं। इस कला द्वारा स्थानीय लोग समानता और एकता का सन्देश देते हैं।
3. इस कला को बनाने के लिए औपचारिक प्रशिक्षण (Formal Training) की आवश्यकता नहीं होती। इस कला को घर के बड़े अपने से छोटो को परंपरा की तरह सिखाती है।
मुझे उम्मीद है, इस ब्लॉग को पढ़कर आप मुग्गुलु कला से जुड़े सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को जान गए होंगे। यदि मुग्गुलु आर्ट से जुड़ा आपका कोई प्रश्न है तो नीचे Comment Section में ज़रूर पूछें।
मेरा नाम प्रज्ञा पदमेश है। मैं इस प्यार से बने मंच – कारीगरी की संस्थापिका हूँ। अपने अनुभव को आप सभी के साथ साझा करना चाहती हूँ ताकि आप भी मेरी तरह कला के क्षेत्र में निपुण हो जाएं।