क्या आपने भी अल्पना आर्ट के बारे में सुना है ? कभी आपके मन में भी ये प्रश्न आया है कि अल्पना क्या है ? यदि हाँ, तो इस कला के बारे में जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें।
रंगोली जैसी दिखने वाली अल्पना, बंगाल की प्राचीन लोककला शैली है। त्योहारों एवं उत्सवों पर घर के आँगन अथवा मुख्य द्वार पर महिलाएं उँगलियों द्वारा पिसे चावल से डिज़ाइन बनाती हैं।
मैंने इस ब्लॉग में प्राचीन लोककला, अल्पना से सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को साझा किया है।
अल्पना क्या है, कैसी दिखती है और भारत के किस क्षेत्र की प्रमुख लोक कला शैली है
इससे पहले कि मैं अल्पना क्या है ? इसके विवरण में जाऊं। नीचे एक सूची में इस अद्भुत कला का संक्षेप विवरण दे रही हूँ –
अल्पना कला का उद्गम
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा संस्कृति |
अल्पना का अर्थ
‘लेप करना’ अथवा ‘पलस्तर’ |
अल्पना में मुख्य आकृति
सूर्य, देवी लक्ष्मी के पैरों के निशान, कमल, मछली और स्वास्तिक |
अल्पना बनाने की सामग्री
पिसे चावल का घोल, चावल का सूखा पाउडर, फूल-पत्तियों से बने सूखे रंग, लकड़ी का कोयला एवं जली हुई मिट्टी |
अल्पना कब बनाये जाते हैं ?
पारंपरिक शादियों, नामकरण समारोहों और त्योहार |
अल्पना कला कौन बना सकता है ?
परिवार की महिलाएं |
अल्पना क्या है ?
अल्पना, बंगाल की प्राचीन लोककला शैली है। यह सदियों पुरानी है लेकिन आज भी बंगाल के लोग पूरे हर्षोल्लास इसे बनाते हैं। विशेष समारोह एवं उत्सवों पर घर के मुख्य द्वार, आँगन और दीवारों पर बनाया जाता है। बहुत से परिवारों में अल्पना लगभग रोज़ बनती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह खुशियां और उन्नति लाती है।
अल्पना कैसी दिखती है ?
यह दिखने में बिल्कुल रंगोली जैसी लगती है। अगर परंपरागत अल्पना के चित्र की बात करें तो यह हमेशा से पिसे चावल के घोल से बनाई जाती है। अल्पना को बनाने के लिए किसी निश्चित Patterns या Stencils की ज़रुरत नहीं होती बल्कि महिलाएं अपने हाथों की उँगलियों से बनाती हैं।
अल्पना की उत्पत्ति एवं इतिहास
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा संस्कृति में बंगाल की प्राचीन लोककला अल्पना के चिन्ह मिलते हैं। इसके अलावा वात्स्यायन के ‘कामसूत्र’ में अल्पना को चौंसठ कलाओं में से एक माना गया है।
भारतीय कला के पंडित कहे जाने वाले आनंद कुमार स्वामी जी का मत है कि बंगाल की बनाए अल्पना का सीधा संबंध 5000 वर्ष पूर्व की मोहनजोदड़ो की कला से है।
व्रतचारी आंदोलन के जन्मदाता और बंगला लोक कला के विद्वान, गुरुसहाय दत्त बंगाली स्त्रियों द्वारा अल्पनाओं के मध्य बनाए जाने वाले कमल के फूल मोहनजोदड़ो के समय के कमल के फूल का प्रतिरूप मानते हैं।
कुछ विद्वानों का मत है, भारत में आर्यों के आने से बहुत साल पहले यहाँ रहने वाले आस्ट्रिक लोग जैसे मुंडा प्रजातियां हमारी संस्कृति में अल्पना को लेकर आई।
कृषि युग में लोगों का ऐसा मानना था कि अल्पना बनाने से अच्छी फ़सल होती है और प्रेतात्माएँ भाग जाती हैं।
अल्पना का अर्थ क्या है ?
अल्पना का अर्थ संस्कृत में, ‘ओलंपेन’ है, जिसका अर्थ होता है – ‘लेप करना’ अथवा ‘पलस्तर’।
अल्पना कब बनाए जाते हैं ?
पारंपरिक शादियों, नामकरण समारोहों और त्योहारों के दौरान सजावट और समारोह में सुन्दर अल्पनाओं का निर्माण किया जाता है।
अल्पना डिज़ाइन बनाने की तकनीक
अल्पना में रूपांकनों और डिजाइनों को आमतौर पर स्टेंसिल या पैटर्न के उपयोग के बिना, एक मुक्त हाथ की शैली में बनाया जाता है।
अल्पना कला में किन आकृतियों को बनाया जाता है ?
अल्पना में मुख्यतः सूर्य, कमल, स्वास्तिक, उल्लू, सीढ़ी, हल, सांप, शंख लाता, सिंदूर पात्र, लक्ष्मी जी के पैर, मछली, पान के पत्ते और चावल का तना आदि बनाए जाते हैं।
अल्पना कला का क्या महत्त्व है ?
प्राचीन काल में लोगों का विश्वास था कि ये कलात्मक चित्र शहर व गाँवों को धन-धान्य से परिपूर्ण रखने में समर्थ होते हैं और अपने जादुई प्रभाव से संपत्ति को सुरक्षित रखते हैं। इसी दृष्टिकोण से अल्पना का धार्मिक और सामाजिक अवसरों पर प्रचलन शुरू हुआ।
मुझे उम्मीद है, इस ब्लॉग को पढ़कर आप अल्पना कला के सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को जान गए होंगे। यदि अल्पना आर्ट से जुड़ा आपका कोई प्रश्न है तो नीचे Comment Section में ज़रूर पूछें।
मेरा नाम प्रज्ञा पदमेश है। मैं इस प्यार से बने मंच – कारीगरी की संस्थापिका हूँ। अपने अनुभव को आप सभी के साथ साझा करना चाहती हूँ ताकि आप भी मेरी तरह कला के क्षेत्र में निपुण हो जाएं।