यदि आप भी मांडना आर्टिस्ट हैं और इसे सीखना चाहतें हैं तो आपको इस कला के सभी प्रकारों के बारे में ज़रूर जानना चाहिए।
मांडना आर्ट को विभिन्न आकृतियों, त्योहारों, उत्सवों एवं ॠतुओं के आधार पर मांडना आर्ट को वर्गीकृत किया जा सकता है।
इस ब्लॉग में हमनें मांडना आर्ट के सभी प्रकारों के बारे में विस्तार से बताया है। इसलिए ब्लॉग के अंत तक हमारे साथ बनें रहें।
मांडना के प्रकार अथवा विषय – विस्तार से जानें
मांडना क्या है, कितने प्रकार की होती है और इसकी क्या विशेषताएं हैं ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको हमारे इस ब्लॉग में मिलेंगे क्योंकि हमने यहाँ इस कला से सम्बंधित विस्तृत जानकारी दी है।
मांडना के प्रकारों के बारे में जानने से पहले इस कला से सम्बंधित कुछ मुख्य पहलुओं को जान लेना आवश्यक है, जो निम्नलिखित हैं –
राजस्थान और मध्य प्रदेश में बनाई जाने वाली मांडना कला सबसे प्राचीन जनजातियों में से एक, मीणा अथवा मीना द्वारा शुरू की गई थी। |
पूर्वी राजस्थान के हाड़ौती/ हाड़ौली/ हाड़ावली क्षेत्र का मीणा समुदाय मांडना में अधिक संलग्न रहा और गहरी छाप छोड़ी। |
राजस्थान में मांडना कला फ़र्श एवं दीवारों पर बनाई जाती है जबकि मध्य प्रदेश में केवल फ़र्श सजाने में इसका प्रयोग किया जाता है। |
यह केवल मिट्टी की दीवारों अथवा फ़र्श पर ही बनाई जाती है क्योंकि ज़मीन को गाय के गोबर, रति (जो एक स्थानीय मिट्टी है) और लाल गेरू से तैयार किया जाता है। । |
प्रथा के अनुसार मांडना डिज़ाइन बनाना स्त्रियों का कार्य है, इसलिए इसकी आकृतियों में स्त्रीत्व की झलक मिलती है। |
मांडना आर्ट का उद्देश्य
शुरुआती दिनों में यह कला शादी समारोह, त्योहारों और बच्चे के जन्म पर बनाई जाती थी। समय बीतने के साथ मीणा समुदाय की महिलाएं मांडना द्वारा अपने अनुभव दर्शाने लगीं, जिसके साथ ही सामाजिक संगम भी व्यक्त होने लगा।
मांडना आर्ट की आकृतियाँ
मांडना में जीवन का कलात्मक पहलू, पारम्परिक विश्वास, धार्मिक दृष्टिकोण एवं अद्भुत इतिहास देखने को मिलता है। इसे बनाने का कोई निश्चित नियम, अनुरूप व परिप्रेक्ष्य तो नहीं है लेकिन कुछ मुख्य आकृतियाँ सामान्यतः मांडना में देखने को मिलती हैं।
मांडना में बनाई जाने वाली विभिन्न आकृतियों के आधार पर इसे वर्गीकृत किया जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं –
टपकी के मांडना
मांडना की पारंपरिक आकृतियों में ज्यामितीय जैसे – त्रिकोण, वर्ग, विषमकोण, आयत, वृत्त, स्वास्तिक, शतरंज पट का आधार, कई सीधी रेखाएँ एवं तरंग आदि प्रदर्शित किए जाते हैं।
इनमें से कुछ आकृतियों के प्रमाण हड़प्पा सभ्यता के काल में भी मिलते हैं।
जालीदार मांडना
इसमें बनाई जाने वालीं डिज़ाइन भारतीय वास्तुकला से प्रेरित जालियों जैसी दिखती हैं। इसमें रिक्त स्थान पूरे डिज़ाइन में सामान रूप से होता है।
पुष्प मांडना
यह एक पारम्परिक डिज़ाइन है, जिसमें मुख्यतः आकृतियाँ सामाजिक एवं धार्मिक विश्वास के साथ-साथ जादू-टोने से भी जुड़ी हुई हैं।
स्वरुप चौका
यह मांडने की चतुर्भुज आकृति है, इसका निर्माण मुख्यतः समृद्धि के उत्सवों में किया जाता है।
षष्टकोण मांडना
यह आकृति दो त्रिभुजों को जोड़कर बनाई जाती है, जिसके द्वारा देवी लक्ष्मी को चिह्नित किया जाता है। इसे विशेषत: दीपावली तथा सर्दियों में फसल कटाई के समय होने वाले उत्सव में बनाया जाता है।
पर्व आधारित मांडना
कुछ डिज़ाइन में आनेवाले पर्व एवं उस दौरान होने वाले पर्वों का निरुपण किया जाता है।
सामाजिक एवं धार्मिक परंपरा पर आधारित मांडना
इस प्रकार की मांडना में बहुत सारी आकृतियां किसी मुख्य आकृति के चारों ओर बनाई जाती है। इनमें वर्षों पुराने रीति-रिवाज तथा महिलाओं की दृष्टि को प्रदर्शित करती है।
ज़ूमोर्फ तथा एंथ्रोमोर्फ मांडना
इस प्रकार की मांडना में काल्पनिक देवी-देवताओं के रूप में ज़ूमोर्फ (पशुओं के रूप में देवी-देवता) तथा एंथ्रोमोर्फ (मानवरूपी देवी-देवता) की आकृतियाँ देखने को मिलती हैं।
आधुनिक मांडना
यह सभी डिज़ाइन आधुनिक समय से प्रेरित हैं, जैसे – ट्रैक्टर, बैलगाड़ियां, मोटर साईकिल अथवा बस आदि।
मुझे उम्मीद है कि इस ब्लॉग को पढ़कर आप मांडना आर्ट के सभी प्रकारों के बारे में जान गए होंगे। यदि इस विषय से सम्बंधित आपका कोई भी प्रश्न है तो उसे टिप्पणी अनुभाग में पूछें, हम उत्तर ज़रूर देंगे।
मेरा नाम प्रज्ञा पदमेश है। मैं इस प्यार से बने मंच – कारीगरी की संस्थापिका हूँ। अपने अनुभव को आप सभी के साथ साझा करना चाहती हूँ ताकि आप भी मेरी तरह कला के क्षेत्र में निपुण हो जाएं।