क्या आपने मांडना कला के बारे में सुना है ? कभी आपके मन में भी यह प्रश्न आया है कि मांडना आर्ट क्या है और क्या विशेषता रखती है ?
वर्तमान समय में बहुत से लोग मांडना आर्ट के बारे में जानना चाहते हैं लेकिन हम आपको बता दें कि यह कला नई नहीं है बल्कि सदियों से लोग घर को सजाने में इसका उपयोग कर रहे हैं।
हमनें इस ब्लॉग में मांडना कला से सम्बंधित आधारभूत एवं मुख्य तथ्यों को विस्तार से बताया है। पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए ब्लॉग के अंत तक हमारे साथ बने रहें।
मांडना आर्ट क्या है ?
मांडना, कला के सबसे प्राचीन रूपों में से एक है। इसे विशेष अवसरों पर ज़मीन अथवा दीवारों पर बनाया जाता है। मांडना बनाते समय यह कामना की जाती है कि इसे बनाने से उस स्थान पर खुशियों और सम्पन्नता का शुभागमन होगा।
इससे पहले कि मांडना कला से सम्बंधित तथ्यों को विस्तार से जानें। मांडना आर्ट की मुख्य जानकारी का संक्षेप विवरण इस प्रकार है –
कला का प्रकार
ग्रामीण क्षेत्रीय लोककला |
मांडना कला की उपलब्धता
राजस्थान, मध्य प्रदेश के मालवा और निमाड़ क्षेत्र |
मांडना बनाने के लिए प्रयुक्त सामग्री
खड़िया का घोल, सूती कपड़ा, खजूर की लकड़ी की कूची एवं लाल गेरू |
मांडना कला की तकनीक
पारम्परिक ज्यामितीय एवं पुष्प आकृतियां |
मांडना आर्ट कौन बना सकता है
महिलाएं |
मांडना कला का महत्त्व
प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति का परिचायक त्योहारों के आगमन का प्रतीक कल्पना का चित्रांकन |
मांडना शब्द का अर्थ
इस कला को मांडना, मंदना, माण्डण्य अथवा मांडणा नामों से जाना जाता है। मांडना शब्द, मंडन से लिया गया है जिसका अर्थ सज्जा होता है। यह कच्चे फर्श अथवा मिट्टी की सतह पर गोबर से लिपाई करने के बाद बनाई जाती है।
मांडना कला का इतिहास एवं उत्पत्ति
मांडना कला के उद्गम से सम्बंधित इतिहास में अनगिनत कथाएं मिलती हैं लेकिन कोई भी सटीक प्रमाण नहीं हुआ। मांडना चित्रों से इसकी उत्पत्ति वैदिक युग, 1500 से 500 ईसा पूर्व मानी जाती है।
महर्षि वात्स्यायन की कृति कामसूत्र में 64 कलाओं में से छठवीं कला को मांडना कहा गया है, जिसका तात्पर्य फ़र्श को सजाने से है। वर्तमान में मांडना कला का प्रचलन सर्वाधिक राजस्थान के मालवा और निमाड़ क्षेत्र में देखने को मिलता है।
मांडना बनाने की सामग्री
मांडना बनाने के लिए महिलाएं मुख्य रूप से खड़िया के घोल का उपयोग करती हैं। इसे महिलाएं सूती कपड़े, खजूर की लकड़ी की कूची तथा अँगुलियों की सहायता से बनाती हैं।
मांडना के धरातल तीन ऋतुओं के आधार पर वर्गीकृत किए जाते हैं। ग्रीष्मऋतु के लिए लाल, गीष्मकाल में भूरे एवं तथा वर्षाॠतु में हरे रंग की सतह बनाई जाती है।
मांडना डिज़ाइन बनाने की तकनीक
यह पारम्परिक कला राजस्थान की महिलाएं वर्षों से उत्सवों और शुभ समारोह पर बनाती आ रही है। वे इतनी निपुण हो चुकी हैं कि बड़ी कुशलता से अपनी उँगलियों द्वारा मांडना बना लेती हैं।
मांडना डिज़ाइन में हमेशा केंद्र से छोर की और आकृतियां बनाई जाती हैं। इनमें मुख्यतः ज्यामितीय एवं पुष्प आकृतियां विशेष रूप से उपयोग की जाती हैं।
इनके अतिरिक्त कई सीधी रेखाएँ, तरंग, त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत्त, स्वास्तिक तथा शतरंज पट का आधार भी इस्तेमाल किया जाता है।
मांडना कला कौन बना सकता है ?
शुभ अवसरों पर महिलाएं ज़मीन अथवा दीवारों पर मांडना डिज़ाइन बनाती हैं। इसके लिए तत्व एवं आधार चुनना पूर्णतः महिलाओं का निर्णय होता है। वे पूरे धैर्य एवं रूचि के साथ मांडना का चित्रांकन करती हैं।
मांडना कला का क्या महत्त्व है ?
मांडना के रूप में आज भी राजस्थानी युवतियां प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को इस कला में संजोई हुई हैं। जो हमारे भारतीय संस्करों के धरोहर का परिचायक है।
युवतियों की उंगलियों में लगे लाल, पीले, हरे और केसरिया रंग दर्शाते हैं कि उत्सव होने वाला है। यह रंग मात्रा सुंदरता के परिचायक नहीं हैं अपितु हर व्यक्ति की पसंद को दर्शाते हैं, जिससे उनके मनोभावों का पता चलता है।
घर-घर में मांडना का चित्रांकन भारतीय सभ्यता का वो पक्ष दर्शाता है, जो मंगल भावनाओं से जुड़ा है।
मुझे उम्मीद है कि इस ब्लॉग को पढ़कर आप मांडना आर्ट से जुड़े आधारभूत तथ्य जान गए होंगे। यदि इस विषय से सम्बंधित आपका कोई भी प्रश्न है तो उसे टिप्पणी अनुभाग में पूछें, हम उत्तर ज़रूर देंगे।
मेरा नाम प्रज्ञा पदमेश है। मैं इस प्यार से बने मंच – कारीगरी की संस्थापिका हूँ। अपने अनुभव को आप सभी के साथ साझा करना चाहती हूँ ताकि आप भी मेरी तरह कला के क्षेत्र में निपुण हो जाएं।