मैं एक लेखिका हूँ, जिसने लेखन की अलग-अलग विधाओं में रचनायें की हैं। अपने इस ब्लॉग में अपनी लिखी हुई शायरियां आपके साथ साझा कर रही हूँ। उम्मीद करती हूँ आपको पसंद आएंगी।
विभिन्न कैटेगरीज़ में विभाजित एक्सक्लूसिव 309 शायरियां प्रस्तुत हैं।
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ग्रीटिंग कार्ड में कैसी शायरी लिखें – आइये जाने क्योंकि ये सिर्फ पंक्तियाँ नहीं बल्कि हमारी भावनाओं का प्रतिबिम्ब हैं
ग्रीटिंग कार्ड में लिखी शायरियां कार्ड देने वाले और कार्ड लेने वाले- दोनों ही लोगों के लिए बहुत ख़ास होती हैं। यदि आपको भी शौक है ग्रीटिंग कार्ड्स गिफ्ट करने का तो आपको ये ब्लॉग ज़रूर पढ़ना चाहिए।
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न्यू ईयर कार्ड में कैसी शायरी लिखें ?
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खनकेगी सुबह रौशनी, शादाब से पहले; हर एक नए साल का, रुआब अलग है। |
सुबह की धूप है, ज़्यादा खिली हुई; नए साल की शोख़ी, परछाईं से लिपटी। |
नए साल में मुमक़िन, होगी तेरी अदा; मेरे वास्ते रखना, अपनी यार-ए-आशिकी। |
कश्ती है दौड़ती, साहिल के वास्ते; नए साल में हासिल, मंज़िल तो हो सही। |
रातों के शिकन से, सुबह की सुर्ख़ तक; हर ओर फैला है, नए साल का ख़ुमार। |
जश्न-ए-बहार रातों को, सुबह से जा मिली; नए साल का यही, मिजाज़-ए-तिश्नगी। |
हर शाख़ पे है सर्द, सोती हुई रातें; लगता है फिर वही, नया साल आ गाया। |
नया साल नए ख़्वाब से, जागा है दोस्तों; इस दफ़ा हसरतों को, ज़ाया न होने दो। |
तारों की चकाचौंध में, डूबा है आसमा; हर एक नए साल की, पोशाक़ यही है। |
चमकी हैं रौनक़ें, दस्तूरे ख़नक से; सज कर शौक़ से, नया साल आ गाया। |
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ग्रीटिंग कार्ड में वैलेंटाइन्स डे पर कैसी शायरी लिखें ?
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दिन दिल्लगी का शौक़ से, आया है मुद्दतन; खुश होगी हीर, अपने रांझे को देखकर। |
न रोको मुझे, तर्कों की पैमाइशों; जब सोच लिया इश्क़, करना ही पड़ेगा। |
आठों पहर में एक तो, पहरा मेरा बना दे; मैं इश्क़ कर सकूं, अहले दिल से यार को। |
मुझसे न संभालता, तेरे दिल का टुकड़ा; नज़रें हैं सबकी इसपर, तिरछी पड़ी हुई। |
इश्क़ की दरियादिली, पैबंद में छिपी; तुमको अगर ये होता, तो तुम भी जान जाते। |
सजदे में मुहब्बत के, झुक जायेगा वो सर; ग़र तू ज़रूरी है, माशूक़ के लिए। |
हर दिल में मुहब्बत को, जायज़ कहा गया; जब तक मेरे सीने का दिल, धड़का तलक़ न था। |
तोहफे में तुझे क्या दूँ, यार-ए-साफिया; तू जानती है मुझको, इत्रे ख़ुलूस से। |
पैग़ाम-ए-यार मुझको, ख़ुदाया अता हुआ; ये राज़ आ मिला, मुद्दतों के बाद है। |
खुश हूँ मुझे भी इश्क़, किसी से हो गया; इतराऊंगा अब मैं भी, यारों के सामने। |
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वूमेंस डे पर कैसी शायरी लिखें ?
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बदनामी से छिपाकर, रखती है हर सिफ़त; किसको पड़ी है तेरी, यहाँ कौन तेरा है। |
जो बदगुमां में ख़ुद की, तौहीन कर रही; हर रोज़ सुलगती है, चूल्हे की आग में। |
औरत है जिस टूटी हुई, देहलीज़ पे बंधी; वास्ता ख़ुशी का, जुड़ेगा वहां नहीं। |
जो सोचते हैं ख़ुद को, मालिक़-ए-इनसिया; रहमों करम पे जीते हैं, तौहीद के लिए। |
घर को संभल रखा है, साए को भूलकर; ये औरतों से गुर, सीखने की बात है। |
हिज्र से वाक़िफ़ हैं, सौग़ात-ए-दिल्लगी; दरियादिली इन औरतों से, छूटती नहीं। |
बेक़ायदे की सिलवटें, पोशाक में सजी; हुस्न-ए-जहान में इनसिया को, लाया कौन है। |
माथे के कुमकुम से, पायल का वास्ता; है औरतों को आता, बाखूब जोड़ना। |
औरत से न पूछो, तक़लीफ़ क्या हुई; होने को इस जहान में, चर्चे बहुत हुए। |
मदों के इस जहाँ में, सहमी शराफ़तें; इल्ज़ाम-ए-इनसिया, कब बंद करोगे। |
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ग्रीटिंग कार्ड में फ्रेंडशिप डे पर कैसी शायरी लिखें ?
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सोचें अमीर की, होती नहीं हासिल; यारी के वास्ते, मैं ठोकरों सा हूँ। |
नज़रों की हसरतों को, पूरी ज़रा करो; मैं लौट आया हु, तेरी यारी के वास्ते। |
रस्ते गुज़र गए, पहचान पे मेरी; जबसे मेरा यार, मुझसा है बन गया। |
पहुंचेगी न कभी, कोई चोट तुम तलक; मुझसे गुज़ारना होगा, हर एक दाग़ को। |
दिल के दराज में, रखी है रौशनी; यारों ने किया मुझको, इतना अमीर है। |
यारी का शौक़ मुझसे, वाकिफ़ न हो सका; बिछता रहा हूँ मैं, हर एक राह पर। |
यारों की यारियां, रह जाएँगी यहीं; आईनो में उनके, मुझसा न मिलेगा। |
दिन दोस्ती का कोई, न मुल्तवी करो; हर रोज़ शिद्दतों से, निभाउंगा इसे। |
पहचानते हैं मुझको, यारों के शौक़ से; आमदा में मेरा, यही वजूद है। |
यारों के वास्ते, रुकी मेरी ज़मी; लगता है इसने फिरसे, गहरा नशा किया। |
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टीचर्स डे पर कैसी शायरी लिखें ?
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तालीम के वो ख़त, हूँ रोज़ ढूंढता; वापिस कोई ला दे, मुझको सबक़ के दिन। |
जानें कितने किस्से हैं, आपकी यादों के पीछे; तिनके से उठाकर मुझको, जिसने है मकां बनाया। |
आपके साए में, जीते ख़िताब यूं; न ख़ुद को जानता, मेरे घर का आईना। |
सीखा न सबक़ कोई, अहले ग़ुरूर में; कालिख को तराशा, भरोसे से आपने। |
मुमक़िन नहीं भूलूँ, सीखें किताब की; छप गया ज़हन में, हर लफ्ज़ आपका। |
मैं जानता हूँ, जीत जाऊंगा जहान में; ग़ुरूर आपका हूँ, सर चढ़ के जियुंगा। |
ग़ुर सीखने का हमने, सौ दफा जिया; हर दफा को अपने, हासिल बनाया है। |
कलम की ताकतें, समझाईं हैं जिसने; वो शख़्स आप हो, पूरे जहान में। |
लफ़्ज़ों के भेंस में, तालीम जिसने दी; सजदा मुझे बख़्श दो, ऐसे हुज़ूर का। |
आपको मिलें, उम्रों की शोहरतें; तालीम देने का, जुनून और हो। |
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ग्रीटिंग कार्ड में देशभक्ति शायरी कैसे लिखें ?
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मेरे देश की मिट्टी,
हटती नहीं मुझसे; तौक़ीद है उसकी, मुझसे जुड़ी हुई। |
पर्व राष्ट्रप्रेम का सदा रहे,
भ्रातात्वभाव से खड़ा रहे; किंचित काया न दुश्मन की, मेरी भोलीभाली माँ पे पड़े। |
रुपया पैसा घरबार न मांगू,
मुझे मातृभूमि सा संग दो रे; सम्बन्धों के है रंग अनेक, मुझे केसरिया रंग दो रे। |
वीर पुरुषों ने निरंतर,
जब पुत्र धरम निभाया है। तब मेरी मातृभूमि ने, गौरव अस्तित्व सजाया है। |
मातृभूमि के चरणों में,
मैं भी शीश नवाऊँगा; चरणों में माँ के नतमस्तक, देशप्रेमी कहलाऊंगा। |
हासिल हुआ मुझको,
दुआओं में वतन; इसपे मर-मिटने का, है हक़ आता हुआ। |
मातृभूमि के चरणों में,
मस्तक अपना भी वार दें; सैनिक के संघर्षो को, नित-नित हृदय आभार दें। |
वतन के वास्ते,
छोड़े सभी अपने; घर छोड़ने का ग़म, सैनिक से न पूछना। |
हूँ सरहदों से वाकिफ़, बाखूब-ए-ख़ुदा; वहां हसरतों के क़तरे, रौशनी में भीगतें हैं। |
जानते हैं मुझको,
नाम से उसके; खुश हूँ कि मेरा देश, पहचान है मेरी। |
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चिल्ड्रन डे पर कैसी शायरी लिखें ?
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बचपन की चोटों के निशां,
मिट जाए न कहीं; इसलिए दुनियां ने रोज़, इक नई बक्शी। |
मासूम मिलूंगा मैं,
बचपने में तुमको; थोड़ी मासूमियत, उधार ले आना। |
पहचानते हैं मुझको,
मेरे बचपने से लोग; खुश हूँ कि मैंने अपनी, उम्र रोक ली। |
साईकल के पहिये में सिमटा;
घर का रास्ता, देता है मुझे आज भी, बचपन का वास्ता। |
बेकस हुए वजूद से,
मेरे ही मालिकान; ये गुनाह नहीं, तो फिर बचपना है क्या। |
कसकर थामे गुड़िया,
आएगा लौट बचपन, रंगीन ख्वाब रखती, नज़रों में पिरोकर। |
है दूर बहुत जाना,
थोड़ा साथ तो निभाना; बचपन में वापसी का, रस्ता मुझे बताना। |
बेफिज़ूल लादा,
उम्रों का बोझ भारी, मुझको फिर से देदो, बचपन की रंगीन पिचकारी। |
परिंदे उड़े नहीं,
मौसमी हवाओं से; तानों में दुनियां ने, इसे भी बचपना कहा। |
बारिश की बूंदों में,
कागज़ की नाव; बचपन में दौड़े-भागे, पहुंचे न किसी गाँव। |
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ग्रीटिंग कार्ड में लव शायरी कैसे लिखें ?
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सह जाऊंगा मैं भी, उसकी सारी बेरुख़ी; इक बार जो वो कह दे, मुझको भी इश्क़ है। |
परछाई इश्क की, मुझपे है पढ़ चुकी; लगता है हुस्न का, कोई दांव खेल गया। |
बीत जाएगी, जब इश्क़ की ये रात; सुबह को तुम किसे, महबूब कहोगे। |
ग़म चाहता बनु मैं, इश्क़ का क़ातिल; इस बदगुमां को कोई, समझाए तो सही। |
मैं सोचता हूँ इस पल, मिट जाएं दूरियां; इश्के-जूनून में अक्सर, होता बहुत है। |
हुस्न-ए-फज़ल की आब, लौटेगी ज़मीं पर; फ़िदा होगा फिर कोई, मुहब्बत का नुमाइंदा। |
बीतेगी कोई रात, आग़ोश-ए-बांह में; तफ़्तीश न करना, दुनियावी क़ाफ़िरों। |
आती नहीं ख़ुशी, मेरे ख़ुलूस तक; मुहब्बत से मुल्तवी, दो-कोस जा बसी। |
रूकती है कभी यूँ ही , चलती है दरबदर; होशों की रवाइयाँ, मुहब्बत से न सम्भलें। |
है इश्क़ मेरे आका, रुस्वाई का मोहताज; इस वास्ते ये मुझसे, पाला नहीं जाता। |
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सैड शायरी कैसे लिखें ?
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शामिल नहीं करती, पहचान को मेरी; तन्हा ही जी रही, आशिक़ी मेरी। |
न रोक सका सौ, वादों के बाद भी; वो बेवफ़ा रहा, वफ़ाओ के बाद भी। |
रूठकर भी मुझसे, हासिल है क्या हुआ; न दिल तेरा रहा, न तू मेरा हुआ। |
रातों में कब हैं सिमटी, सर्द गर्मियां; चाहने वालों के दिल, कभी भरा नहीं करते। |
मौजों में है शामिल, किनारों के हमक़दम; वादाख़िलाफ़ी करना, ज़रा सोच-समझ के। |
अहले वफ़ा को हमने, हासिल है यूँ किया; जो छूट गया उसको, छोड़ते गए। |
न सर पे आसमां, न क़दमों में ज़मी है; हर सिफ़्त में तन्हां, बस तन्हां रहा हूँ मैं। |
मिलती नहीं फुर्सत, जो मेरे बाद भी; ये क्यों नहीं कहते, कि सिर्फ खुद के हो। |
सोचता हूँ कोई, रस्ता अलग चुनूं; हर रास्ते पर मुझको, एहतराम ये मिला। |
मैं हो न सका उसका, ये गुमां रहेगा; ताउम्र का राब्ता, पल भर भी न चला। |
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ग्रीटिंग कार्ड में बेवफ़ाई शायरियां कैसे लिखें ?
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खुद को भूलकर, दूजे को चाहना; ये बेवफाई का, पहला सबक है। |
मोहब्बत को कोसने के लिए, वो आमदा हुए; जब बेवफा का असली, क़सूरवार न मिला। |
कैसे बयां करू, उसकी बेवफाइयाँ; चाहता हूँ उस,को दिलों जां से ज़्यादा। |
पहुंचेगी नहीं दिल्लगी, मेरे लहू तक; मैं जनता हूँ, बेवफ़ा होती है आशिक़ी। |
रोए वो मेरे बाद, मुझसे ही लिपट कर; ये बेवफाई इश्क़ की, सौ दफा देखी। |
सोचता नहीं था, सजदों से पहले; दिल मेरा भी कभी, उसका ग़ुलाम था। |
न रह सका जीकर, मेरा बेवफा सनम; ये रंज मेरी मौत का, क़सूरवार है। |
जिस्म से रूहों की, बेवफाइयाँ; छोड़ जाती हैं सबको, ज़मीं पे रुला कर। |
रोता है मुसलसल दिल, छिपकर रूह में; बेवफ़ाई से जबसे, है रूबरू हुआ। |
सहता रहा ज़माना, चालाकियां तेरी; बेवफ़ाई का तूने, अच्छा सबक़ दिया। |
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बर्थडे कार्ड पर कैसी शायरी लिखें ?
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रौशनी से दामन, ताउम्र तेरा सजे; जन्मदिन की रौनक, बेशुमार हो। |
पहचान जायँगे, सब दूर से वो शख्स; जन्मदिन हो जिसका, रुआब अलग है। |
राब्ता है तुझसे, मेरा कोई पुराना; तोहफे में मिला है तू, सौ-सौ दुआओं बाद। |
पहुंचे रस्ते पे, किस्मती तोहफे; जन्मदिन पे ऐसा ही, होता है मुसलसल। |
रस्मों रिवाज बढ़कर, पहुंचें हैं उन तलक; पहली ही नींद जाएगी थी, जन्मदिन की। |
ख्वाबों के सिरहाने, मेरा शौक आया है; फिर से वही ख़ास दिन, लौट आया है। |
रहतें हैं दूर मुझसे, मेरे चाहने वाले; जश्ने जन्मदिन का, बुलावा भेजा है। |
चारों तरफ उजाला, रौशन हुआ है आज; मेरे दोस्त का जन्मदिन, शौक से मनाऊंगा। |
हो न तुझे कभी, ज़र्फ़ की कमी; जन्मदिन की खुशियां, बरसों बरस रहे। |
तारीख जश्न की, लौट आई है; लगता है मेरे यार का, जन्मदिन आ गया। |
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शादी के कार्ड पर कैसी शायरी लिखें ?
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जोड़े के मिलन की, हर गाँठ अमर हो; सातों जन्म की खुशियां, दुगनी हों हर जन्म में। |
ओस की ठंडक से, जीवन तेरा सजे; नाज़ों से रहे लाडली, रानियों की तरह। |
खुशियों के घरौंदे में, तू शान सी रहे; हर एक शख्स वाकिफ हो, तेरे रुआब से। |
मेरे यारे ज़िन्दगी का, बहुत ख़ास दिन है; हीर फिर से होगी, रांझे की कैद में। |
भूल जाना मुझसे, जो कभी ख़ता हुई; मुबारकों में अपनी, शामिल माफियां भी हैं। |
तुझसा न कोई खुशनसीब, होगा मेरे दोस्त; तू सदा रहे महलों में, रौशनी की तरह। |
आशिता दुआओं का, बस जाये इस तरह; आज के दिन की, चकाचोंध रोज़ हो। |
मुबारक़ हो तुमको, शादी की रौनकें; मोहब्बत से सजे तेरा, नायब काफिला। |
सदियों के बाद आज, दुल्हन बना मकां; मेरे यार की शादी, दुनिया भी तो देखे। |
ख़ास दिन है आज, मेरे जिगरी यार का; मुद्दतों बाद खुशियां, उसकी चौखट पे आयीं हैं। |
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ग्रीटिंग कार्ड में होली पर कैसी शायरी लिखें ?
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भीगीं गलियां भीगा मौसम, होली का यही है संगम; पावन पर्व की बेला में, मिल जाएं अपनों से हम-तुम। |
हरा गुलाबी आसमान, नीली पिली हुई ज़मीं; केशव के रंगों में रंगी, राधारानी खिली-खिली। |
फागुन की फुहार में, मिल जाये यूँ मनमीत; ऐसो रंग चढ़े राधा पे, जैसे केशव भयो अबीर। |
गुजिया पापड़ी सेवे से, होली हो सम्पूर्ण; खुशियाँ आये आपके घर, मस्ती हो भरपूर। |
गुजियों -सी मीठी चाशनी, घुले जीवन में आज; होली का पावन पर्व, यूँ ही बना रहे ख़ास। |
गले लगे है मुझसे, खिलखिल के मौसिकी; लगता हैं रंगो का, फिर त्यौहार आ गया। |
प्रीत की बंसी मधुर बजे, स्नेह का जब हो साथ; होली रंग जिसपे चढ़े, छूटे न फिर साथ। |
फागुन माह में मीत मिले, मिटे मन का मैल; होली रंग जिसपे चढ़े, गेहराये दिन रैन। |
रास रचाये कन्हैया, ब्रज राधा के संग; अबीर में नाचें गोपियाँ, ग्वाल बजाएं मृदंग। |
रंगों से न खेलो, यार दिल्लगी; ग़र चढ़ गया गहरा, तो निभाना ही पड़ेगा |
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दिवाली पर कैसी शायरी लिखें ?
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सुख समृद्धि से रौशन हो आँगन, जीवन में घुले मिठास; लक्मी-गणपति द्वार विराजे, दिवाली लाये नए स्वप्नप्रवास। |
दीवाली की चमचम में, फुलझड़ियों का शोर; रौनक को चैगुना करें, मन हो भाव विभोर। |
मीठे से मीठी बोली, है कोई मुझसा मीत; दीवाली में जिसे मिलू, सबके मन को लूं जीत। |
अँधियारा न रह जाए, चैखट पे दीप जलाना; दिवाली संग अपनों के, अनन्य खुशियां मनाना। |
त्योहारों के मौसम में, इसकी पहचान निराली है; काली रात मिटाने को, आती हर बरस दीवाली है। |
मीठे की मिठास घुले, पटाखों की हो गूँज; रौशनी से घरबार सजे, दीवली में आये खुशियां भरपूर। |
दीप की गरिमा अलौकिक, तेज हो चारों ओर; दीपावली की खुशहाली, रचे-बसे घनघोर। |
लक्मी माँ की कृपा रहे, धन धान्य का हो वास; गणपति आये आपके घर, सदा रहे आशीर्वाद। |
पटाखों की गूँज से, यूँ भरा-भरा समां; दिवाली चकाचौंध से, देखो सजी हुई। |
रौशनी की चादर में, लिपटा है आसमां; दिवाली के तोहफे में, खुशियां आई हैं। |
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ग्रीटिंग कार्ड में राखी पर कैसी शायरी लिखें ?
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राखी से पवित्र कोई,
रिश्ता नहीं जहाँ में; माँ-बाप से भी ऊपर, हो जाया करता है। |
भाई-बहन का प्यार,
मिलता नसीब से; खुशकिस्मती की यारों, ये गहरी निशानी है। |
राखी में पिरोकर,
बांधा है तुमको प्यार; हर साल हो ये दुगना, हमारे रिश्ते में। |
मेरे भाई का नाम,
ऊंचा सदा रहे; ज़मी से आसमां तक, बस वो ही वो दिखे। |
कच्चे धागों से बंधे,
सच्चे ये रिश्ते; हर साल हो मज़बूत, हर एक राखी से। |
बंधन से बंधे हम, हर बार साथ में; भाई-बहन सा रिश्ता, दूजा न जहाँ में। |
राखी के धागों से, बंधे हुए रिश्ते, हर एक नाम पे, भारी पड़े बहुत। |
साथ तेरा-मेरा, पाकीज़ यूं रहे, जिस भी जन्म मिले, मुझे भाई ही कहे। |
तेरी दुआओं से, पहुँची फलक पे हूँ, भाई तेरे जैसा, नसीबों से है मिला। |
वाकिफ हूँ मैं बाखूब, हर एक चोट से, तुम तलक न आने दूंगा, एक भी निशां। |
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ईद पर कैसी शायरी लिखें ?
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रंजो ग़म भुलाकर,
कसके गले मिलो; ईद आई है, जश्न-ए-ख़ुबा के साथ। |
पहुंचेगा कभी चाँद,
जो तेरी दहलीज़ पे; ईदी में मुझे मेरी, मोहब्बत लौटा देना। |
ईद की मीठी सिवइयों को,
तुम भी चख लो, कड़वहट मिटने में, बहुत काम आएगी। |
कब तक दिलो में फासले को,
तुम बढ़ाओगे; आएगी जब भी ईद, गले किसको लगाओगे। |
हर रोज़ घूरता है,
मुझे चाँद दूर से; मेरी चांदनी पे, दिल आया है लगता। |
दिलों में नफरतों को,
न तुम जगह दो; आई है ईद गैर को भी, गले लगा लो। |
रखतें है कदम फूँककर,
हुस्न-जानां; पहुचंगे जिस रोज़, ईद हो ही जाएगी। |
अर्ज़िया अपनी सभी,
लिख दो बेहिचक; ईद में हो जायँगी, क़ुबूल बाखुदा। |
चाँद झरोखे से,
झाँकने लगा है; लगता है वही ख़ास दिन, ईद का आ गया। |
पहुंचेगी दूर तक,
तहे दिल की ख्वाहिशें; ईद में दुगनी हों, जश्न की सभी पैमाइशें। |
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मदर्स डे पर कैसी शायरी लिखें ?
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ममता से सींचती, वो शाख़ हर्फ़ की; सहरा में भी दिखेगा, मेरा घर बसा हुआ। |
माँ सा न मिल सका, बस ये गुमां रहा; धोखे मिले बहुत, अपनों के भेस में। |
मालूम मुझे रंजोशां, तेरा ग़ुरूर भी; टूटेगा देखकर, मेरी माँ की अदायगी। |
माँ सी सुबह हुई, सुबह सी माँ हुई; यूं लफ्ज़ के खेले, हर सिफ़्त में सच हैं। |
माँ के वजूद में, जन्नते-रौशनी; जाने क्यों ढूंढता, तू हर तरफ ख़ुदा। |
देती है मोहब्बत में, हर बात तौल के; माँ की नसीहतों की, फ़ेहरिस्त बड़ी है। |
हो जायेंगे वाकिफ़, इक रोज़ वो काफ़िर; माँ के दुखों को खुद जो, समझते फ़रेब हैं। |
तोलो न उसके प्यार को, अपने तराजु में; मापों के क़ायदे में, सिमटेगी माँ नहीं। |
मीठी सी इक सुबह में, फैली है रौशनी; माँ की दुआएं, फिर से लौटी है मेरे यार। |
रोते हैं आसपास जब, ज़माने के चोचले; गूँजें मेरे कानों तक, माँ आने नहीं देती। |
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फादर्स डे पर कैसी शायरी लिखें ?
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होंगी पिता के चेहरे में, लाखों सिलवटें; हर एक में छिपा, है नाम बच्चे का। |
बाप के कन्धों से, लिपटी हैं सिसकियाँ; झुकी हुई हालत की, तौहीन न करो। |
मुँह मांगी मन्नतों में, शामिल हो आप भी; रहमों करम खुदाया, बख़्शे मुझे पिता। |
तारीफ जितनी हो, काम हो ही जाएगी; इक पिता के प्यार को, दोगे क्या हौंसला। |
पाला है तो पालने का, हक़ आता करो; एक बाप चाहता न, औलाद से कभी। |
पहचान को मेरी, यूं ही न तोलिए; मेहनत से है सींचा, बरसों मेरे पिता ने। |
मुझपे हैं रेहमतें, पिता के साए की; तरक्की को सीना, सीखा मैंने उनसे। |
बाप के साए में, नामें औलाद है; वारना कौन जनता है, किसका ख़ून है। |
शामों शहर में, उजाला अवाम है; लगता घर मेरे, अब्बा लौट आये हैं। |
तीख़ी है धूप रेत की, पैरों से न मस्लों; मेरे पिता ने सौंपी हैं, हक़ से ये ग़ुरबते। |
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ग्रीटिंग कार्ड में बेटी के लिए कैसी शायरी लिखें ?
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पहचानते हैं मुझको, तेरे ही नाम से; गर्व है मुझको, मैं तेरा पिता हूँ। |
छोटी सी शैतानी, करती मेरी लाडो; वो बेटी नहीं मेरे, जीने की वजह है। |
न दूसरा कोई, है मुझसा क़िस्मती; बेटी मिली मुझे, लाखों दुआओं से। |
हक़ है आता मुझको, जोडू मैं ये दुनिया; ख़्वाहिश मेरी बेटी की, पूरी करुँ सभी। |
शगुन की रस्म में, रोली शामिल करो; नन्हें क़दम लेकर, आई है मेरे घर। |
सोचता हूँ जाएगी, तू मुझको छोड़ के; इस बात से मेरा दिल, उदास होता है। |
मुस्कान से अपनी, जन्नत वो करती है; परछाई है माँ की, बेटी के रूप में। |
पहली ही झलक में, रौनकें बसीं; मिली है मुझे बेटी, तोहफे नयाब में। |
नन्हें क़दमों से, नापी है यूं ज़मी; लाड़ली ने फिर से, रौशन किया मुझे। |
पत्तों पे भीगी ओस है, मेरी लाडली; ज़िक्र अगर हो, ममता से भीगती हूँ मैं। |
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बेटे के लिए कैसी शायरी लिखें ?
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शगुनों की छिपी आब में, शामिल वो कब हुआ; बेटे तो नसीबों से, मिलते हैं यक़ीनन। |
दिन के उजालों सा, लगता है वो मुझे; बेटे ने मेरे मुझको, मुझसे मिला दिया। |
नामों निशां मेरा, मिटेगा कभी नहीं; औलाद मेरी काफिला, आगे बढ़ाएगी। |
वो वक़्त मुझे याद है, अहले खुलूस का; जिस रोज़ मेरी गोद में, आया तू लाडला। |
रौशन है आसमा, फैली हुई ज़मी; बेटे की बरकतों से, इनकी पहचान बदली है। |
बेटे से आज, रोशन है आम्दा; आसमान में देखो, चांदनी तानी हुई। |
मुझपे रेहम हुआ, दुआओं का वस्ले यार; मुझे भी बख्शा मालिक ने, औलाद में बेटा। |
हूबहू है मुझसे, हर एक नक्श में; मेरी औलाद को तुम, खुद-ब-खुद पहचान जाओगे। |
बाबा तुम्हारा लाडला, तुमसा ही बनेगा; बस वक़्त का दौर, ज़रा बीत जानें दो। |
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ग्रीटिंग कार्ड में भाई के लिए कैसी शायरी लिखें ?
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नामों-निशां भाई का,
हर रोज़ हो रौशन; भीड़ में चमके तू, सितारे की तरह। |
छाया बनके रहता है,
हर पल वो मेरे साथ; भाई के प्यार में मिली मुझे, पिता की झलकियां। |
अपनेपन से सराबोर है,
दिलों का ये रिश्ता, भाई-बहन का प्यार, हर रोज़ हो गहरा। |
सावन की शीतल,
फुहार हो जैसे; भाई मेरे जीवन में, उपहार हो जैसे। |
प्यार से खुशियाँ,
चहक उठती है; भाई के आ जाने से, आँगन गलियां सब महक उठती हैं। |
सूरज से भी बढ़कर,
तेज तेरा हो; भाई मेरे रौनक की, पहचान तुमसे हो। |
पूछेंगी जब मुझसे ख़्वाहिशें,
क्या चाहिए तुझे; हर जन्म में तेरे जैसा भाई, मांग लूंगी। |
अपनों के भेंस में,
सिर्फ तुझको पहचानती हूँ; भाई के नाम पर, बस तुझको जानती हूँ। |
फ़िक्र में मेरी,
घुलते हैं वो अक्सर; भाई मेरी चिंता में, खुद को भूल जाते हैं। |
हर एक दुआ में,
माँगा है आपको; हर जन्म मिलो आप ही, भाई के रूप में। |
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बहन के लिए कैसी शायरी लिखें ?
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उसके नन्हें क़दमों में,
रौनक समाई, छोटी बहन नहीं, मेरे घर पारी है आई। |
प्यारी मीठी बोली से,
खुशियां खूब लुटाती है; मेरी बहन अपनेपन से, सारे घर को महकाती है। |
मेरी राजकुमारी है,
नखरों में सब पर भारी है; सबसे लड़ जताती घर में, मेरी बहना प्यारी है। |
बस मेरा हाथ पकड़ कर चलना,
दुनिया में ज़रा संभलकर चलना; प्यारी बहना को छुए भी न, मतभेद से थोड़ा बचकर चलना। |
रीत है दुनियादारी,
हर चिड़िया को उड़ के जाना है, किसी बहन का कोई घर ही नहीं, पर रिश्ता सबसे निभाना है। |
हसरतें ख़ुद की खोकर,
घर को सजाती; मेरी बहना पायल की खनक से, रौनकें ले आती है। |
आती हैं घरों में,
रंग भरने को सभी; बहनों का अता है, ख़ुशक़िस्मती। |
दुनिया की बंदिशे,
रखूँगा कोसों दूर; मेरी बहन की तक़दीर से, न मिलने दूंगा मैं। |
पहुंचेंगे आसमान तक,
मेरी बहन के निशां, सपनों को जब वो अपने, पूरा करेगी। |
तोहफे में मिले सबको,
दुनियां की दौलतें; मुझको मिली बहन, जिसमें दुनियां मेरी मिली। |
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ग्रीटिंग कार्ड में पति के लिए कैसी शायरी लिखें ?
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बीत जाएगी, ग़र रात ख़्वाब की; सवेरा फिर से मुल्तवी, परछाईं से होगा। |
सुबह के चरागों से, रौशन हुई ज़मीं; लगता है नयी किश्त का, मौसम आ गया। |
सोएगी जिस रात, सुकून से रूह मेरी; ज़िंदा हूँ यक़ीनन, मैं मान जाऊँगी। |
टूटता था जो, बाहों में कौंधकर; बदली का यूं तड़पना, ज़मीं पे आ गिरा। |
बहरूपिया है यार मेरा , संभल के देखना; इक नज़र में किसी को भी , आशिक वो बना दे। |
शायराना मिजाज़ मेरा, वो जनता नहीं; नादान है बहुत, मुझे चाहने वाला। |
मेरी रूह में दिखता, उसका ही अक्स है; शामिल है मुझमें, उसकी ही सूरतें। |
परछाइयों से में मेरी, न मुल्तवी हुए; तक़दीर में मिले वो, लकीर की तरह। |
शोखी में न शामिल करो, मेरे प्यार की हदें; वो सिर्फ मेरा था, मेरा ही रहेगा। |
बेनूर हो गए तारे, आसमान के; क्या तुमने जगाया उन्हें, अपनी ख्वाबगाह में। |
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पत्नी के लिए कैसी शायरी लिखें ?
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यूं रोज़ ख्यालों में, आते नहीं सिदरे; लिखना ज़रूरी था, सो लिख दिया तुमको। |
कलमें रुकी रहीं, लफ़्ज़ों की तड़प में; न उसने कुछ कहा, न मैंने कुछ कहा। |
चाहती ह मुझको, ज़ाहिर मेरी क़लम; लफ्ज़ मेरे लब के, पन्नों पे उकेर कर। |
सुनते नहीं हैं लोग, तारीफ़े अल शिफ़ा; शायरों के इस जहान में, मुक़ाम खूब हैं। |
महफ़िल में शायरों की, पहचान जाएगी; मौसिकी से मेरी, वाकिफ़ है दिलरुबा। |
लफ़्ज़ों की सादग़ी में, क़लमों को अता क्या है; यूं बेफिज़ूल कहना, कब तलक़ चलेगा। |
है कलम अता मुझको, तक़दीर में साक़िब; मैं यूं ही नहीं लिखती, फ़िज़ूल फ़लसफ़े। |
छुप के फैला है आँचल, उसके आगोश में; गहराएगी अब रात, इश्क-ए-जूनून की। |
रातों में सिमट आई है, ख़्वाबों की आरज़ू; मिलूंगा आज उस से, बरसों के बाद मैं। |
मैं शायर का ख़्वाब बनूँ,
तुम अर्ज़ सुर्ख बन जाओ; मुझे सुने हर शख़्स यहाँ, तुम इरशाद कहलाओ। |
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ग्रीटिंग कार्ड में गर्लफ्रेंड के लिए कैसी शायरी लिखें ?
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मैं डूबता हूँ बनकर, दरिया तेरी चैखट; कदमों को कभी, सिफ़्त से बाहर तो निकालो। |
मेरे बाद भी रहेगी, तेरी ग़र्दिशे महफ़िल; जाऊँगा छीनकर, तुझसे तेरा सबकुछ। |
लौटूंगा न मैं फिर से, बस इक दफा आके; चौखट पे बंधी मुझको, पाजेब तो देदो। |
रोकतें है मुझको, सवालों के क़ायदे; यूं बंदिशों में रखना, क्या ग़ुनाह नहीं है। |
मेरी मुश्क़िलों में शामिल, तेरा क़ुसूर भी; हूबहू तुझ-सा होना, ग़ुनाह हो गया। |
पहचान तेरे जिस्म की, हो नहीं पाती; और ख़ुद में ढूंढता है, गुमा हुआ ख़ुदा। |
लौटेगी नहीं शोखी, रस्मों-रिवाज की; ये भूलकर तो कोई, फ़ाज़िल नहीं होता। |
तालीम के हर सबक़ से, वाक़िफ़ हूँ यक़ीनन; हर इब्तेदा का ज़ाहिर, मजमून अलग है। |
हर वक़्त तोड़ती है, तेरी वादा-ए-ख़िलायफ़ी; अब न मैं तुझको ढूंढूं, न तू मुझको ढूंढ। |
सादग़ी से रौशन, तालीम कहाँ है; शमा गुम न जानें, है किस गुमान में। |
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बॉयफ्रेंड के लिए कैसी शायरी लिखें ?
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चाहूंगा मैं तुझे , किसी रोज़ टूट कर; इस हौंसले ने मुझको, जीना सीखा दिया। |
मुझसा नहीं है कोई, इस बदगुमां में; आईने को तोड़ा, फिर ख़ुद से सौ दफ़ा। |
इश्क़ में गुज़रेगी, ताउम्र पाक़ीज़ा; हौंसलों से तेरे, उड़ान मिली है। |
हैं हौंसलों की मुझमें, बारीक़ियाँ छिपी; एक शाख़ से उड़कर, दूजे पे न पंहुचा। |
तेरे बाद मुमकिन, बेबाक तेरा इश्क़; ख़ुद-से-ख़ुद को चाहना, छोड़ा नहीं जाता। |
न हो सकेगा मेरा, वो नीला आसमां; उसमें मुझे चाहने का, हौंसला ही नहीं है। |
बीत जाएँगी जब वक़्त की, सभी पैमाइशें; तब रूक कर मैं भी देखूंगी, आख़िर वो मुझसे चाहता क्या है। |
क़ाश के मुक़म्मल हो, तेरी वादाई-रस्म; मैं उफ़ तक न करुँगी, सदियों के इंतज़ार में। |
टूट कर भी ख़ुद से, रस्में निभाए जा; अहल-ए-वफ़ा का असली, दस्तूर यही है। |
पाज़ेब मेरे पैर की, ला दो मेरे मालिक़; यूँ सूनापन जिस्मों का, अच्छा नहीं लगता। |
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ग्रीटिंग कार्ड में मोटिवेशनल शायरी कैसे लिखें ?
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एक दिन का ताज हो,
वो रुआब ख़ास हो; शौक़ में ही सही पूरे, कभी तो मेरे ख़्वाब हों। |
अंधेरों में गुजनू ढूंढते हैं,
मेरे शहर के लोग दरबदर ढूंढते हैं; आबाद से परेशां होकर वो ग़ुम हुए, न जाने अब क्यों उनके निशां ढूंढतें हैं। |
तक़दीर से पहले मिल जाये,
वो सड़क अभी तक बनी नहीं; कच्ची मिट्टी में रम जा तू, फिर देख मिलेगा लक्ष्य वही। |
उम्रों में आंकना ,
ज़िन्दगी के दस्तूर; ऐसे गुनाह कभी, न करना हुज़ूर। |
मत होने दो ख्वाबों को,
निगाह से अलग; बिछड़ कर भी कब, किसे सुकू आया है। |
सड़क के वास्ते,
रुकने का दम नहीं; मेरे क़दमों में ज़ख्मों, का मरहम लगा है। |
तक़दीर रूकती है,
हथेलियों पर; ये झूठे बहाने अब, काम नहीं किया करते। |
महंगे अरमान भी ख़ुद में,
गुर रखतें हैं; मामूली पोशाक में, वो नहीं सजते हैं। |
बस में नहीं हैं अब,
मौसमी तकाज़े; सरहदों के फासले, जबसे दिलों में उतर आये हैं। |
रात होते ही घरोंदों में,
लौट जाना तुम; रातों के सवेरे, पंछियों के लिए हुआ नहीं करते। |
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दिल शायरी कैसे लिखें ?
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हर दांव पे जीता है, डूबा हुआ सूरज; रातों के गहरी, जिसने कुर्बानियां हैं दी। |
रात के साए में, बीतेगी बेरुखी; क़ासिम को मुहब्बत में, मिसरे यही अता। |
रोज़ दौड़ती थीं, सड़कों पे बिजलियाँ; हुस्न-ए-बहार , कब से देखी नहीं मैंने। |
कहने को कुछ न बाक़ी, हुस्ने-अज़ीज़ के; वो तोड़ती गई, हम टूटते गए। |
बंदिशें रोकतीं हैं, नज़रों को अक्सर; इस सोच से मोहब्बत, हो नहीं पायेगी। |
हसरतों को सोचते हो, काबू में रखूँ; जाओ तुम्हें दिल से, आज़ाद कर दिया। |
दिल को ख़ुशी है मेरे, पैग़ाम तेरा आया; बहुत दिनों के बाद, चैनों सुकून में हूँ। |
दिल रोकता है, वस्ल की ताबीर को मालिक़; वो मेरा न हुआ, तू चीज़ क्या है। |
वास्ता तेरा, मेरे वजूद से; नौशान न हुआ, अहले दिल कभी। |
इंतज़ार-ए-यार, रहा न गया; बेसब्र दिल खुद-ब-खुद, उन तक जा पहुंचा। |
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ग्रीटिंग कार्ड में दुनियाँ पर कैसी शायरियां लिखें ?
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शामों के साए से, वाकिफ़ हैं काफ़िले; सोते हैं उजालों में, जानबूझ कर। |
पहचान को अपनी, तुम भूल जाओगे; बस इक दफा वाकिफ़, दुनियाँ से हो जाओ। |
दुनियाँ के ख़ौफ़ सा, न कोई आईना; न देखना कभी, बेवजह इसे। |
सोती है दुनिया, रातों के भेस में; जगाता नहीं मैं भी, बेवक्त उसे। |
कलमों दरख़्त के रास्ते, खूनों में जा मिले; पहचान कर तो देखो, तेरा-मेरा है क्या। |
ताबीज़ मेरे शौक़ का, बनवा के मुझे दो; मानूंगी तब मैं, जादुई रिवायतें। |
मैं रोकती हूँ खुद को, हर रोज़ दरबदर; चारों दिशा में फैला, जबसे अंधेर है। |
शक़्लों पे जब लिखें हैं, दुनियावी फ़लसफ़े; इंसां को कुरेदते, क्यों मुझे इंसान दिख रहे। |
अशर्फी के सौदे, होते हैं मुक़म्मल; गुज़रे ज़माने के, क़ौल अलग हैं। |
हर लब से टकराना, आदत है लफ्ज़ की; दुनिया के चोचले, मुझे अच्छे से पता हैं। |
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नज़र पर कैसी शायरी लिखें ?
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एहसास रौंदती है, तेरी झुकी नज़र; उठकर वो सामना, करती नहीं कभी। |
बह जाएगी रवायत, आँखों से बसबब; क़ैदों में अब न तेरी, पैग़ाम मेरा है। |
नज़रे झुकी हुई हैं, मेरे बाद भी; लगता है मेरी मौत का, अफ़सोस उन्हें है। |
हिस्से में नहीं आयी कभी, मेरे आशिक़ी; नज़रे मिलाईं जब भी, तौहीन ही मिली। |
नज़रों को कभी दो, कजरे का वास्ता; अश्कों में डूबता, होता नहीं जुदा। |
तेरी होक भी, न वादे निभायेंगी; निगाहों की यही, बेवफाई है। |
मिल सके कभी, निगाहें यार की; बदगुमा हर शख्स का, दीदार कर लिया। |
चाहतें होती हैं, नज़रों से ही बयान; वरना लोग फलसफे, बनाते बहुत हैं। |
न मिल सका मुझे, नज़रों का काफिला; सारी रात मैं सर्द, रहा आसमान में। |
नज़रें मिलाओ मुझसे, सौ दफा यूँही; मैं भी तो देखु, अकड़ कहते हैं किसे। |
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ग्रीटिंग कार्ड में आशिक़ी पर कैसी शायरी लिखें ?
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आशिक़ी के साए में, सिमटी हैं रौनकें; यकीं अगर न हो, तो करके देख लो। |
आहट पे मचल जाते, वो लोग और थे; आशिकी के ज़ाहिर, अब आशिक़ और हैं। |
कहने को और क्या है, तेरे ख़ुलूस का; न ख़ुद में तू शामिल, न मुझमें तू बचा। |
माशूक़ अगर न हो, मौसिकी में शामिल; फिर सकूं नहीं आता, शायरी के दरमियां। |
रोक लेगी तुझको, मेरी अदाएगी; हर बार छोड़ जाना, आसान नहीं होता। |
रोकती है मुझको, तौही मिजाज़ से; आशिक़ी की उम्र में, ऊंची उड़ान थी। |
शायरी से इक पल भी, हटते नहीं नुक़्ते; बस यही बात आशिकी की, अच्छी नहीं लगती। |
बुझ गया है दीपक, सूरज के दाव से; तारों में जो जला था, रोशनी के वास्ते। |
बेख़्याल रौंदती जिसे, हुस्न की रिवायतें; आशिक़ मिज़ाज़ी मुझसे, तामील न करो। |
आशिक मिज़ाज़ी, सबके बस की बात नहीं है; हौंसला चाहिए, वादे निभाने को। |
कमेंट सेक्शन में ज़रूर बताएं कि आपको ये शायरियां कैसी लगी ? कौन सी शायरी आपको सबसे ज़्यादा पसंद आयी, ये भी बताएं।
मेरा नाम प्रज्ञा पदमेश है। मैं इस प्यार से बने मंच – कारीगरी की संस्थापिका हूँ। अपने अनुभव को आप सभी के साथ साझा करना चाहती हूँ ताकि आप भी मेरी तरह कला के क्षेत्र में निपुण हो जाएं।